By Karan Bhardwaj
कैद समझ जिस दहलीज को पार कर आए, आखिर क्यूँ अब वो मन को भाए?
जान रहे थे जिसको आपना लेकिन अब गैरों संग वो ही नजर आए।
सोच गये थे कि मंजिल पाना जैसे एक रंज होगा, लेकिन समझा ना था कि जिंदगी मे ही शतरंज होगा।
कुछ दर्द एक संग जताए...लेकिन क्या करे जब वो जाए?
जब देख इन सबको रोना आए तब मन को क्यूँ उस दहलीज मे अपने ही नजर आए, आखिर अब मुझे
कैद मे दुनिया और दुनिया मे कैद नजर आए।
By Karan Bhardwaj
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