By Nadeem Ahmad

ये कैसा सफ़र है जिसमें कोई हमसफ़र नहीं
ये कैसी ज़िंदगी है जिसमें कोई रहगुज़र नहीं
ये कैसी मुसलसल राहें है जिनकी मंज़िल नहीं
ये कैसी ज़िद है जिससे कुछ भी हासिल नहीं
ये कैसा समंदर है जिसका कोई साहिल नहीं
ये कैसा क़त्ल है जिसका कोई क़ातिल नहीं
ये कैसा दिल है जिसकी कोई धड़कन नहीं
ये कैसा दिन है जिसमें कोई उलझन नहीं
ये कैसा दरिया है जिसका पानी बहता नहीं
ये कैसा आशियाँ है जिसमें कोई रहता नहीं
ये कैसी ज़िंदगी है जिसकी कोई आरज़ू नहीं
ये कैसी बंदगी है जो तू मेरे रूबरू नहीं
ये कैसा हुस्न है जिसकी कोई अदा नहीं
ये कैसी ख़ामोशी है जिसमें कोई सदा नहीं
ये कैसा लम्हा है जिसमें कोई तन्हाई नहीं
ये कैसी घडी है जिसमें तेरी याद आयी नहीं
ये कैसी ज़िंदगी है जिसमें कोई जुदाई नहीं
ये कैसी आँख है जो कभी भर आयी नहीं
ये कैसी शब् है जिसकी कोई सहर नहीं
ये कैसा दिन जिसका कोई पहर नहीं
ये कैसी आँख है जिसमें कोई अश्क़ नहीं नदीम
ये कैसी किताब है जिसमें कोई लफ्ज़ नहीं नदीम
By Nadeem Ahmad
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