By Sachin Mujumdar
ज़रूरी नहीं की सत्ता और सरकार हमेशा बुरी हो
उम्मीदें इतनी भी मत पालो की लगे हमेशा पूरी हो
उन्हें देश चलाना है और तुम्हे चलाना है अपना ये घर
सब खुद को सम्हालो पहले सब अपने घर की धूरि हो
पहले तोला करो जज़्बात को फिर बोला करो बात को
ऐसा न लगे सबको की मुँह में ज़बान की जगह छूरी हो
जनसेवा का माध्यम है राजनीति तो जनसेवा ही कर
ऐसा न लगे जनता को ये की राजनीती तेरी मज़बूरी हो
उकता गया है कलम चला चलाकर अब तू भी "सचिन"
लगता है मुझको भी अब ये ग़ज़ल शायद कहीं अधूरी हो
By Sachin Mujumdar
Gazal chahe adhuri ho lekin kalam chalti rahe ye kaam zaroori ho.
नहीं आपकी लेखनी में आग है, इसे ऐसे ही जलाए रखना
बहुत सुंदर