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Noted Nest

Gazal-3

Updated: Oct 2

By Sachin Mujumdar



जाने कैसे कब कहाँ कुछ लोगो में आ गया इतना दम्भ 

दुकाने खोलकर बैठ गया है लोकतंत्र का तीसरा स्तम्भ 


कुछ चाटुकारिता में लगे है तो कुछ बेवजह तेरी बुराई में 

रो मत पगले अभी तो सिर्फ पतन का हुआ है ये आरम्भ  


ज़िम्मेदार यहाँ अब बचा है कौन न प्रेस और न ही रिपोर्टर 

सत्य को कैद में कर ये खुद अब जो रहने लगे है मलंग 


अर्जुन के गाण्डीव से निकला तीर हो या राम बाण अभेद 

सत्य तो सामने आएगा ही क्योंकि सत्य सदा से है अभंग


By Sachin Mujumdar



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3 Comments


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मिडिया की सच्चाई को बया करती है ये कविता....👍🏻

Edited
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बहुत प्रभाव शाली ज्वलंत समस्या और नागरिकों के आचरण का खुलासा

बुद्धिजीवियों के लिए नयापन है

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