By Rachana Chaitanya Navathe
रात के अंधेरों से चांदनी की चांद से
हवा का झोका लेके आए एक सुबह एक सुबह
झगमगाए ये गगन नाचे गाए तनबदन
पुरी हो रही है मन की मर्जियाँ मर्जियाँ
फूल सारे खिल गए रंग बदल बदल गए
तो कर रही शरारते ये तितलियाँ तितलियाँ
तिनके तिनके जुड गए पंछी आके बस गए
छू रही है रोशनी को डालियाँ डालियाँ
मछलियों की आह से समंदर है गुंजते
मिल रही किनारों से ये लेहेरियाँ लेहेरिया
हरी हरी चुनर पे वो मोतियों सी ओस है
लुभा रही है मन को वो चुनरियाँ चुनरियाँ
ठेहेरना चाहे मन यही खुशियों की बाग में
युँही खुशनुमाँ सी हो हर सुबह हर सुबह
By Rachana Chaitanya Navathe
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