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Ek Subah

Updated: Apr 19

By Rachana Chaitanya Navathe


Ek subah

रात के अंधेरों से चांदनी की चांद से

हवा का झोका लेके आए एक सुबह एक सुबह


झगमगाए ये गगन नाचे गाए  तनबदन 

पुरी हो रही है मन की मर्जियाँ मर्जियाँ


फूल सारे खिल गए रंग बदल बदल गए

तो कर रही शरारते ये तितलियाँ तितलियाँ


तिनके तिनके जुड गए पंछी आके बस गए

छू रही है रोशनी को डालियाँ डालियाँ


मछलियों की आह से समंदर है गुंजते 

मिल रही किनारों से ये लेहेरियाँ लेहेरिया


हरी हरी चुनर पे वो मोतियों सी ओस है

लुभा रही है मन को वो चुनरियाँ चुनरियाँ


ठेहेरना चाहे मन यही खुशियों की बाग में

युँही खुशनुमाँ सी हो हर सुबह हर सुबह


By Rachana Chaitanya Navathe


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