By Shakti Shukla
उंगलियां उठाने वालों के बीच
कोई नज़रें झुकाए बैठा था.....
डूब रहा था जब सब कुछ मेरा
तब वो किनारा रोके बैठा था....
जब नाराज़गी थी शब से
तब वो शामें लेकर आया था.....
ये आसमान ये सितारे
भला क्या हैं उसके आगे.....
महक उठती है रूह मेरी
आज भी महज़ उसके नाम से
इस कदर नूर वो अपनी आँखों में
लेकर आया था.....��
By Shakti Shukla
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