By Sakshi Saxena
आज रिश्तों के मायने बदले से हैं
एक ही घर में रहते लोग अजनबी से हैं
कभी एक ज़माना हुआ करता था
हर शाम अपनों के साथ वो महफिल सजाना हुआ करता था
वो सबके साथ बैठ टीवी देखना
वो बच्चों का बाहर खेलने निकलना
हर रात साथ खाना खाना
वो साथ मिल खुशियां फैलाना
हर दर्द अपना कह जाना
एक दूसरे का हाथ बटाना
कभी एक ज़माना हुआ करता था
जब घर घर सा लगता था
आज तो रिश्तों के बदले रंग हैं
जीने के सबके अलग ढंग हैं
ज़िंदगी सबकी फोन में बसी है
अब तो अपनों की ख़बर भी सोशल मीडियास से मिलती है
रिश्तों में फासले कितने आ गए
खुद तक सिमटते सिमटते हम अपना वजूद ही भूला गए
हर शाम हमारा घर लौटना तो होता है
खामोशी को सहेली बना घर ले जाना होता है
दर्द अपना दिल में छुपाते हैं, जज़्बात अपने कहने से कतराते हैं
जाने कैसे हम रिश्ते निभाते हैं
की बस खुद तक ही सिमट जाते हैं
कभी तो वो वक्त आए जब हम अपने दिल की बताए
रिश्तों को मन से निभाए
कभी तो वो वक्त आए जब घर फ़िर से घर कहलाए...
By Sakshi Saxena
True 💯
So True !!! Really beautiful Lines
So relatable
💗💝
That's amazing 🤩 😍... Your writing skills are excellent 👌💯🤩