By Jeeshant Mathur (Shayak)
रहम कि आदत डालवा रहें हैं वोह,
खत्म कत्ल ए आदत करने के बाद,
कहा कि शराफत हैं हर बार ज़ख्म भरना
खरोंच के चलें जाना ज़ख्म भरने के बाद,
क्या फायदा आखिर सीने में धड़कन रखने का,
आखों में दिल अब तक हैं आखें मिलने के बाद,
रो रहे हैं जो मातम में सब हुबहु हैं मेरे,
मैं भी खूब रोया था मुझको दफ्न के बाद
उसके निकाह में इतनी खामोशी मेरा दिल बैठे जाए
कही माना तो नही कर दिया सजने संवरने के बाद
तेरे गाल चूमना तो दूर हाथ पकड़ना तक मुश्किल हैं
गनीमत हैं कि मिल रहे हैं बात इतनी बिगड़ने के बाद
सब पत्ते हटा कर ले गईं एक हवा मेरी कब्र से,
खूबसूरत लगी लाश भी कितनी उजड़ने के बाद,
चला आया मैं जहन्नुम से तलाश ए सराब में
दिखी तेरी परछाई मुझे जन्नत के झरने के बाद
मैं तो भूल ही गया था मेरा घर कैसा दिखता हैं
याद आया तेरे घर के बाहर से गुजरने के बाद
By Jeeshant Mathur (Shayak)
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