By Shweta Kumari

दिल के किसी कोने में पड़ी
एक पुरानी सी यादों की अलमारी।
गुमसुम सी खामोश सी अलमारी,
खट्टे मीठे पलो से भरी एक अलमारी।
कुछ खत है बिना पते के,
और कुछ अधूरे से किस्से।
कुछ धुंधली सी तस्वीरों से,
भरी पड़ी है वो अलमारी।
एक कोने में तहा कर रखा,
मेरा वो मासूम सा बचपन।
परत दर परत सहेज कर रखा,
अजनबी रिश्तों का अपनापन ।
जीवन के हर मौसम में टिकी रहती,
वक़्त के थपेड़ों से लड़ती ,
मेरे अधूरे ख्वाहिशों से भरी,
चुप चाप सी खड़ी वो अलमारी।
उपेक्षाओं की बारिश में खड़ी,
संघर्ष के धूप में टिकी रहती।
मेरे दबे कुचले अरमानों से भरी,
हारी हुई हौंस्लों का भार उठाए अलमारी।
मेरे अंदर के खालीपन को समेटे,
बाहर से लडने का साहस देती अलमारी।
हर किरदार के पठकथा को सहेजे,
मेरे अस्ल वजूद का एहसास कराती अलमारी।
By Shweta Kumari
रचनाकार अपने खालीपन को विविध रंग देती हैं...उन्हीं यादों की पिटारी है ये अलमारी
अद्भुत रचना