By Jeeshant Mathur (Shayak)
थोड़ा सा हिसाब
थोड़ी सी शराब
सब थोड़ा थोड़ा रह रहा हैं
जीवन मुझसे चलने को नहीं
अब रुकने को कह रहा हैं
तेरी सांसे मेरी आहे
तेरी सख्ती मेरी नरमी
अब सब कुछ तो ये घर सह रहा हैं
कभी टप टप कभी फका कषि से
कभी आखों से तो कभी छत से
खून मेरा पानी की तरह बह रहा हैं
तुझे किस बात से दिक्कत हैं
तेरी तकलीफ कि तो मैं ही मात हूं
मेरा खानदान भी तो हमेशा तेरी शह रहा हैं
जो ठहर गया हैं इस वीराने को गांव कहकर यारो
कभी ना कभी वो भी किसी फसादी जगह रहा हैं
कौनसी लहरे आख़िर दूबाएंगी मुझे
कौनसा साहिल रेत खींचेगा नीचे से मेरे
पैरों तले तो मेरे हमेशा ही अब्तह रहा हैं
निकाह के बाद शायद तू हो गई होगी काली
मेरे राज में तो तेरा रंग अक्सर अस्बह रहा हैं
हमारी शक्ल से तो लगता हैं कि धरती पर कई युग गुज़ार दिए
पर तेरा इतंजार करते करते यह दिल हमेशा उम्र सत्रह रहा हैं
By Jeeshant Mathur (Shayak)
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