By Vandana Pathak

हमने आंसुओं में मुसकुराहट को देखा,
दुःख के घनघोर बादलों में आशा की किरण को देखा ।
जो कल तक अपने थे, उनको पराये होते देखा,
ख़्वाबों के महलों को खंडहर होते देखा ।
जीवन के इस प्रहर में धूप छाॉंव का खेल देखा,
इस रंगीन दुनिया के कुछ रंगों को फीका होते देखा ।
सफ़र-ए-मंज़िल की तलाश में लोगों को भागते देखा,
मंज़िल हासिल होते ही उन ही लोगों को थकते देखा ।
अंधकार मिटाने वाले चाँद को ढलते देखा,
बहारों में ख़ुशबू बिखेरते उस गुल को मुरझाते देखा ।
ना कर तू गुमान अपने होने का,
हमने हर वजूद को ख़ाक में मिलते देखा ।
By Vandana Pathak
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