By Kavita Batra
सिर्फ ख्यालों से नहीं,
मैं हर हाल में रहूँ आज़ाद।
मैं नागरिक हूँ इस देश का ,
मैं हर नगर में रहूँ आज़ाद।
मैं नहीं बस्ता किसी धर्म में,
मैं हर कर्म से रहूँ आज़ाद।
मेरे वजूद को नहीं पहुंचे किसी की भी ठेस ,
मैं हर चुनौती को पार , सर उठाकर करूं, ऐसे रहूँ मैं आज़ाद।
मेरे आँगन के बुज़ुर्ग,
मेरे आँगन की बेटी ,
मेरे आँगन का बेटा ,
रहे बेफिक्र इस देश के हर मौहल्ले, हर सड़क पर,
मैं तो सिर्फ इतना ही चाहूँ,
बस ऐसे ही मैं रहूँ आज़ाद।
बस ऐसे ही मैं रहूँ आज़ाद।
By Kavita Batra
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