By Shalini Sharma
कल जैसे ही खामोश रात हुई,
ख्वाब में सावन से मेरी मुलाकात हुई ।
रात के साथ मेरी खामोशी
उसे खल रही थी ।
वो ठहरा हरा भरा
मेरी फीकी मुस्कुराहट
उसे छल रही थी।
उसने मेरी ठोड़ी पकड़
मेरा चेहरा जैसे ही उठाया ।
सम्मोहित - सी कुब्जा ने
मानो कृष्ण को पाया ।
उसने मेरा हाल -ए- दिल टटोला
और फिर मुस्कुराकर यूँ बोला
जरा अपनी अंधेरी
कुटिया से बाहर आओ
कुछ मौसम का लुफ्त उठाओ
कभी ठंडी बयार- सी
दूर तलक घुमाओ
बूँदों सरीखी शीतलता
सबकी जमी तक पहुंचाओ
और अगर नहीं लेने मजे
तो किसी और दुनिया में जाओ
भला चैन कहाँ सावन में
आदमी की जात को
तुम समझती ही नहीं मेरी बात को
भई गुस्सा आया है तो
घनघोर घटाओ सी बरस जाओ
बादलों की तरह गरज जाओ
हाँ प्यार आया है तो
हल्की फुहार- सी
छू जाओ चुपके से मन को जरूर
पर तुम अपनी खामोशी पर मत इतराओ
राग मल्हार गाओ
सावन का गीत सुनाओ
और कुछ नहीं तो
फिल्मी गीत गुनगुनाओ
हाथों पर मेहंदी रचाओ
हरी चूड़ियां पहनो
पहनो हरा सूट
बताओ भला सावन से
ऐसे भी जाता है कोई रूठ
पगली ,तेरी खुशियों का इंद्रधनुष
जहां खिल जाए
समझ लो वह तुम्हारा आकाश है
खोजो तो सही वह तुम्हारे ही आसपास है।
By Shalini Sharma
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