By Sandeep Singh
इइंतजा ह ये है के तेरे आग़ो श में समा ना चा हता हूँ
पर समुन्दर हूँ , नदी में समा नहीं सकता
तेरे पा स आना तो चा हता हूँ
पर कुदरत का दस्तूर पलटा नहीं सकता
दि न रा त जलता हूँ तेरे इश्क़ की आग में
देख समुन्दर हो कर भी ये आग बुझा नहीं सकता
एक दि न मर जा ओगा तेरी मो हबत की प्या स में
देख में अपनी प्या स मि टा नहीं सकता
तेरे पा स आना तो चा हता हूँ
लेकि न आ नहीं सकता
By Sandeep Singh
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