By Gautam Anand
एक नोटबुक है
एहसासksa की जिल्द मढ़ी हुई
यादों के धागे से जिसमें
नत्थी कर रखे हैं मैंने
समय के पन्ने
और समय व्याकुल है
वो चाहता है बीत जाना
लेकिन बेबस लाचार सा अटका हुआ है
अनंत वर्षो से इसी नोटबुक में
मैंने बंधक बना रखा है समय को
और टाँगता रहता हूँ
याद की खूँटी पर
बीते वक़्त बीती तारीखें
आँखें जैसे खोज़ी कलम हो कोई
ढूंढ लाती हैं सब यादें
ऊकेर देती हैं सब तारीखें
वैसे ही जैसे गुज़रा था सबकुछ
पन्नों पर बोल पड़ती हैं वो सब तस्वीरें
देखो अभी-अभी सामने से गुजरी है
वो पहली तारीख तेइस नवम्बर निन्यानवे की
जब तुम्हें देखा था पहली बार
तुम्हारे लौट जाने पर यूँ ही मेरी मायूसी के दिन
तुम्हारे पहले फोन कॉल की तारीख
वो तुम्हारे कॉलेज की परीक्षा का पहला दिन
कॉलेज के पास वाली नदी का किनारा
जब मैं पहली बार तुमसे तुम्हारे शहर में मिला था
चौदह फरवरी दो हज़ार दो
और वो एक सीढ़ीनुमा लक्ष्मी रेस्टोरेंट
जहाँ खाने को कुछ नहीं होता था
बस साथ बैठने को सीढ़ियाँ मिल जाती थी
ट्रेन के अनगिनत सफर में
वो तारीख आज भी मुस्कुराती है
जब मिलने की ज़िद में
हल्की फुहारों वाली बारिश में
ट्रेन की छत पे बैठकर
मैं तुम तक आ गया था
ऐसा कोई पल नहीं जो कभी
आँखों की ज़द से दूर हुआ हो
सत्ताइस नवंबर दो हज़ार आठ की वो तारीख
अपनी शादी के नौवें दिन
जब करीब बाइस महीने बाद
तुमने मुझसे बात की थी
कितना रोयी थी तुम
उन आँसुओं की नमीं
अब भी बिखरी है इन पन्नों पर
और उस तारीख से लेकर
बारह मार्च दो हज़ार नौ तक
तुम्हारी सब आवाज़ें
आज भी गूंज रही है मेरे कानों में
सुनो....
अब ये कैद नहीं सहा जाता मुझसे
अब बीत जाना चाहता हूँ
तुम एक आखिरी आवाज़ दो मुझको
मैं इस नोटबुक से
यादों के धागे खोल देना चाहता हूँ
आओ ले जाओ सब दिन सब तारीखें
ये मेरे अकेले की व्याकुलता नहीं है
आखिर कब तक
तुम्हारे हिस्से की व्याकुलता भी मैं ही भोगूं
अब और नहीं होता मुझसे,
बीत जाने दो समय को
गुजर चुका हूँ तो अब अतीत होना चाहता हूँ
मैं भी हर क्षण की तरह व्यतीत होना चाहता हूँ......
By Gautam Anand
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