By Gautam Anand
आज
जब मैं और तुम
समय की धारा में बहते हुए
समय के दो किनारों पर खड़े हैं
मैं याद करता हूँ
जब मैंने तुम्हारी माँ को ख़त लिखा था
जब मैंने तुम्हारे पिता से बातें की थी
जब मैंने हृदय की अतल गहराइयों से
तुम्हारे प्रति अपना प्रेम व्यक्त किया था
याद है मुझको
कैसे मैंने एक ही साँस में
सहमे - सहमे दिल की सारी बात कही थी
तुम्हारे लिये सर्वस्व समर्पण मेरा
और मेरे लिये अटल विश्वास तुम्हारा
संग जीने की उत्कंठा दोनों की
निश्छल और निस्वार्थ भाव से
करुणामय होकर समझाया था
वो शब्द - शब्द सब
याद है मुझको
जब काँपते लफ़्ज़ों से
मैंने उनसे तुमको माँगा था
मुझको बस इक मौन मिला था
तब केवल एक प्रेमी होकर मैंने
इस अस्वीकृति को स्वीकार किया था
वर्षों बाद समझ आया है
उनका स्वप्न, उनकी आशाएं,
उनका हक़, उनकी इच्छाएं,
तुमपर मेरे प्रेम से बहुत अधिक है
आज न जाने क्यूँ मुझको लगता है
जैसे सृष्टि के नियमों के
उल्लंघन से मैं दोषमुक्त हूँ
तुम जहाँ कहीं हो
दिल को इतनी राहत है
मैंने - तुमने मर्यादा का मान रखा है
पिता - पुत्री के रिश्ते का सम्मान रखा है....
By Gautam Anand
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