By Dushyant Singh Sisodia
आज कल क्यों गुम से रेहते हो,
यूँ बैठे क्या सोचते हो?
वो पल याद कर क्यों रो देते हो।
उन ग़ुमनाम गलियों में,
उन अनज़ान चेहरों में,
क़िसे ढूँढा करते हो?
यूँ चेहरे में मासूमियत से आस लिए क्या सोचते हो।
आँधियों में टकरातीं हवाओ से,
बारिश की गिरती बूंदों में,
किससे सुनना चाहते हो?
आज के अँधेरे में कल की रोशनी को क्यों ढूँढना चाहते हो।
By Dushyant Singh Sisodia
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