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शूभं- निशूभं का वध

Updated: Oct 1, 2024

By Rashmi Dadhich



हे मा तेरे आलोक में फिर से अंधकार गहराया है,

 दानव तांडव कर घूम रहे  अधर्म का शासन आया है, 

फिर स्वर्ग नर्क का दास बना दुर्भाग्य मृत्यु का रास बना ,

 लुट गई  संपदा, सुख ,वैभव, हाथी अजगर  का ग्रास बना 

फिर त्राहिमाम के स्वर गूंजे आकाश धरा पर उतरा है ,

सुख में भूले बिसरे तुझको पर दुख में नाता गहरा है।

 तीनों लोकों पर गहराया असुरों का संकट भारी मां,

 तेरे पुत्रों की सेना भी अब शुंभ निशुंभ से हारी मां।

हे दुष्ट विनाशिनी महा भयविनाशनी पार्वती दुर्गा अंबे,

 दुष्टों का अब संहार करो हे जगत भवानी जगदंबे।

………… 

पुत्रों का वंदन क्रंदन सुन करुणामई पल में पिघल गई, 

अस्त्रों शस्त्रों से आभूषित मां कौशिकी पल में प्रकट भई।

 टन टन  घंटी टनकार बजे दस दिशा में दीप हजार सजे ,

चढ सिंह भवानी गरज उठी देवों के मुख आभार सजे।

माया का आकर्षण देखो असुरी छाया दौड़ी आई,

चंड मुंड रह गए चकित जा शुंभ निशुंभ को दर्शाइ।

मन मोहिनी त्रिपुर सुंदरी को असुरेश्वर तुम जो वर लाओ,

 ब्रह्मांड में फिर क्या शेष रहे जो मन चाहे वो वर पाओ।

पानी ग्रहण  प्रस्ताव लिए असुरों ने दूत को भिजवाया,

विनाश काल के चक्र तले असुरी साम्राज्य स्वयं आया।

 मां अट्टहास करके बोली…..


है कौन वीर जो साध सके मेरी इन अष्ट भुजाओं को,

 युद्ध में मुझको पराभूत करे, सिद्ध जो दसों दिशाओं को।

है आज प्रतिज्ञा यह मेरी जो मेरा दर्प 

मिटाएगा,

 तीनों लोकों का महाबली वह मेरा वर कहलाएगा।

आंखों में क्रोध की ज्वाला भर असुरों ने धूम्र को भिजवाया, 

देवी के केश पकड़ कर ला हम भी देखें उसकी माया, 

देवी ने बस हुंकार भरी पल भर में धूम्र हुआ लोचन ,

साम्राज्य असुर का डोल गया नारी से कैसे हारे मन ।

 अब चंड मुंड की बारी थी

 आहुति हवन में आ रही थी


चंड मुंड को खंड खंड करने प्रकटी खप्पर वाली, 

रणचंडी बनकर टूट पड़ी चामुंडा कहलाई काली,

विष, विकार, मद, लोभ, क्रोध, सब दानव युद्ध में उतर गए,

एक से बढ़कर एक शूर चहूं ओर ही मां के बिखर गए।

दिव्य शक्तियां प्रकट हुई चहूं और भव्य कोहराम मचा,

रक्तबीज के रक्त बूंद से रक्तबीज ने खेल रचा,

चामुंडा मुख विस्तार करें हर बूंद रक्त स्वीकार करें,

कर रक्तबीज का खेल खत्म मां निशुंभ पे सीधे वार करें।

विजय नाद सुनकर मां का शुम्भ ह्रदय डगमग डोला, 

दूजों के बल पर खेल रही मद चूर कुपित होकर बोला।

मां ने स्वरूप विस्तार किया

 अंबर धरती को पार किया।

मैं अजा ,अनंता ,अलक्ष्या  संपूर्ण ब्रह्म का सार हूं मैं ,

कण-कण तृण तृण में परिलक्षित सकल सृष्टि आधार हूं मैं।

 दृश्य ,अदृश्य या जड़ -चेतन ,स्फूर्ति, शक्ति संचार हूं मैं,

है कौन  सिवा मेरे जग में ये सकल पिंड विस्तार हूँ मैं ।

ये सभी विभूति है मेरी नव दुर्गा सृजन संसार हूं मैं,

ये सभी विभूति है मेरी नव दुर्गा सृजन संसार हूं मैं।


देवी कौशल ने पल भर में शुम्भ का भी संहार किया

आसूरी शक्ति से मुक्त सभी मन सदाचार संचार किया। 


By Rashmi Dadhich




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