By Prathamesh Prakash Jadhav
खुदा को खुद पर कितना नाज़ होगा,
तेरे जैसे अनमोल हीरे को उसने खुद तराशा होगा।
मैं झोली फैलाए उसके दर पर तुझे मांगता रहा,
पर मैं एक फकीर, वो हीरा कैसे देगा?”
जिसने तुझे पाया वो कितना खुशकिस्मत होगा,
जो मेरे हाथों में नहीं है वो लकीरे पाया होगा।
इस खबर से अनजान है, क्या उसने पाया है,
मेरी ख्वाबों का सूरज उसने मुझसे चुराया है।
उसकी तारीफ करूँ या शिकायत करूँ,
मेरे हिस्से का नसीब उसने लूट लिया।
रात की चाँदनी में, मेरी सुबह का सितारा चुराया,
मेरे दिल की गलियों को उसने अंधेरों में डुबो दिया।
फिरदौस, अब दिल से बस यही दुआ,
वो जहा भी रहे उसे खुश रखे खुदा।
By Prathamesh Prakash Jadhav
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