By Dr. Amit Prakash
था समय देखता मूक विवश,
सूर्यवँश संलिप्त तमस;
आध्यात्म कि जिव्हा प्यासी थी,
और मेघ स्वयं पाये न बरस;
परम विजयी अक्रांत हुए,
वंचित भये जग राम दरस,
अनिष्ट के बादल घिरे घने,
निर्भिग्य नियति के दास बने ;
षड्यंत्रों का फिर दौर चला,
और झूट-कपट, विश्वास बने,
पर उनका प्रेम था लाल-अटल ,
प्रयास किये भरपूर सकल;
मर्यादा वचन न भंग हुआ,
अंजुलि में पानी गंग हुआ,
फिर राम नाम की लहर चली,
सदियों के लाखों पहर फ़ली,
हर प्राणी गोते खाता था,
राम लला बस गाता था,
फिर न्याय मिला और भोर भई,
महिमा चारों ओर गयी,
जय जय करती प्रसन्न प्रजा,
लहराती प्रचण्ड हनुमंत ध्वजा,
मन्दिर संकल्प मलहार बजा,
व्रत-दान-तपस्या पुनः सजा,
ये हर बलिदान की जय है,
प्रभु-वरदान की जय है,
भवन विराट का विस्मय है,
राम राज का संचय है,
के सरजू तट दीप जलाये हैं,
राम लला अब आये हैं,
राम भजन सब गाये हैं,
राम लला अब आये हैं…||
By Dr. Amit Prakash
जय श्री राम 🙏
Ram aaye hain. Beautiful
Jai Shri Ram. Beautiful poem
Great Dr. Amit, good one!