By Purnima Dave

अठखेलियाँ करे ये नींद मुझको जगाए रात भर,
पलके जो मुंदू ख्वाब आ-आ के सताये रात भर,
काली चादर बिछाए छाया रहा अंधेरा रात भर,
चाँद सितारों का लगा रहा आसमा पे पहरा रात भर|
आरज़ू थी मेरी पास तू होती मेरे रात भर,
बात अधूरी जो थी पूरी कर लेते रात भर,
तू भी ना सोती मै भी जगा रेहता रात भर,
एक दूजे की सिलवटों में खोए रहते रात भर|
नीर नदी का खल ख़लाता रेहता रात भर,
छम-छम धीमी बजती रहती पायल तेरी रात भर,
सरगोशी करते रहते मुझसे ये नजारे रात भर,
पूछा किया कि, कौन रहेगा साथ मेरे? रात भर,
जुगनू बनके दिए जगमगाते रहते रात भर,
तेरे चेहरे से नूर यू बरसता रेहता रात भर,
मै जाम मान इसे पिता रहता रात भर,
मदहोशी सी छायी रहती दरमियाँ हमारे रात भर|
कुछ ऐसी ही गुजरें सोचा था रात मेरी रात भर,
तू ना होती साथ तो और भला क्या होता रात भर,
अठखेलियाँ करती ये नींद मुझको जगाती रात भर,
मै जागता सोता, मै खोया-खोया रेहता रात भर|✨️
By Purnima Dave
Nice creation