By Ruta Joshi
यू आजकल बेचैन से ख़याल रखती हूँ
कम्बक्त यादों में अटकी रहती हूँ।
बिस्तर की नरमीं में सिकुड़कर
अक्सर करवट जो बदलती हूँ ,
आखें खुली और ;ख़्वाबो में उलझ जाती हूँ।
बग़ल में इस ,आज अगर तुम होते,
सिर कंधे पर तुम रखकें
बाहों में मुझें लपेटकर सोते।
तुम्हारी धड़कनों की आहट मेरे कानो तक होती
इतने सुकून में ,आदत से मैं करवट बदल लेती।
फिर सामने वह कोरी दीवार दिख जाती,
वो वक़्त तो पीछें रह गया, ये याद कराती ।
उस बेबसी में आखें भारी होकर मिट लेती,
आख़िरकर वो नींद ही सहारा बन जाती।
By Ruta Joshi
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