By Nikhil Tandon
"एक शहर था
जो अपना था,
शहर में एक गली थी
जहां सब अपने थे,
गली का वो आख़िरी मकान
हां वही तो मेरा घर था,
घर का वो खुला आंगन
जहां खेला था मेरा बचपन,
आंगन से सटा वो कमरा
छोटा था पर हम सबका था,
कमरे से लगी वो सीढ़िया
जो मुझे छत से मिलाती थीं,
छत पर चलती वो ठंडी पुरवाई
जो मेरी हर थकान मिटा जाती थी,
एक अरसा हुआ अब
उस शहर को छोड़े,
हर बार अब वहां
कुछ नया सा लगता है,
कहीं भूल न जाए मुझे
वो शहर वो गली मेरी,
यह सोच कर भी
मुझे डर सा लगता है,
घर पहुंचता हूं जब तो वो भी
कुछ उखड़ा–उखड़ा सा लगता है,
बहुत दिनों बाद आए इस बार
शायद मुझसे यही शिक़ायत करता है"
By Nikhil Tandon
Nice lines
Awesome
Bahut sundar
👏👏
Ghar jb chodty h to ghr hmse alg nhi hota hai
Vo bus ase ghaaw ki trh hota h jo ta-Umar hmri peeth par sath rhty h
Nice articulation