By Nikhil Tandon
“मैं मुक्त मुसाफ़िर है जिसकी
बस एक छोटी सी अभिलाषा
पंख फैलाए एक पक्षी सा
उन्मुक्त गगन में मैं उड़ जाऊं
जनम–मरण के फेरे से
इस जनम मैं तर जाऊं
न कोई दांव–पेंच न ऊंच–नीच
एक हृदय से सबको मैं अपनाऊं
न इस मन का कोई बैरी हो
न इस चित्त का कोई प्रेमी हो
हर प्राणी को एक भाव से
साथ अपने मैं बिठलाऊं
मधुर वाणी सा सबके मुख पर
सुंदर मुस्कान बन मैं खिल जाऊं
चित्त कोमल हो न ठेस किसी को पहुँचाऊं
सुर की माला हो कंठ में हर जन को मैं भा जाऊं
छल–कपट से इतनी दूरी हो
कि स्वप्न में भी न कोई प्रहरी हो
मेरु से ऊंची मेरी उड़ान हो
चाहे पथ पर कितने ही पाषाण हों
न धरम–जाति का बंधन हो
न काली–गोरी चमड़ी का रुदन हो
मात–पिता के चरणों में मैं
नित अपना शीश झुका जाऊं
मैं मुक्त मुसाफ़िर है जिसकी
बस एक छोटी सी अभिलाषा
पंख फैलाए एक पक्षी सा
उन्मुक्त गगन में मैं उड़ जाऊं
जनम–मरण के फेरे से मैं
इस जनम में तर जाऊं”
By Nikhil Tandon
Ummda discription
Kya baat hai 👌
Great poetry skills 👏 👏
Wow extraordinary deep meaning in every line.
Mera bhi man kar raha hai ud jau