By Mudit Shukla
यूं जो किसी और से इश्क़ करके मुझे जला रही हो,
खुदा ही जाने की तुम मुझसे क्या चाह रही हो।
की मुझे उसकी वो नुमूद-ओ-नुमाइश बाते तुम बता रही हो,
क्यों जान-बूझकर मेरे दिल पे ये सितम ढा रही हो।
क्या ये सोचती हो की तुम मुझे अपनी कीमत दिखा रही हो,
या यूं कहुं की आशिको मे अपना रुतबा जमा रही हो।
के मेरे मल्लिलता किरदार पर जो कीचड़ उछाल रही हो,
मुझे ठुकराकर उस एहसान-फरामोष के पास जा रही हो।
एक अजनबी के इश्क में जो मुझे धीरे धीरे भुला रही हो,
ये याद रखना की तुम एक जिंदा जिस्म मिटा रही हो।
By Mudit Shukla
Comments