top of page
Noted Nest

मिटा रही हो

By Mudit Shukla


यूं जो किसी और से इश्क़ करके मुझे जला रही हो,

खुदा ही जाने की तुम मुझसे क्या चाह रही हो।


की मुझे उसकी वो नुमूद-ओ-नुमाइश बाते तुम बता रही हो,

क्यों जान-बूझकर मेरे दिल पे ये सितम ढा रही हो।


क्या ये सोचती हो की तुम मुझे अपनी कीमत दिखा रही हो,

या यूं कहुं की आशिको मे अपना रुतबा जमा रही हो।


के मेरे मल्लिलता किरदार पर जो कीचड़ उछाल रही हो,

मुझे ठुकराकर उस एहसान-फरामोष के पास जा रही हो।


एक अजनबी के इश्क में जो मुझे धीरे धीरे भुला रही हो,

ये याद रखना की तुम एक जिंदा जिस्म मिटा रही हो।


By Mudit Shukla

0 views0 comments

Recent Posts

See All

Untitled

By Sri Ramya Smruthi He always told me I was extraordinary That i was beautiful beyond limits That everybody would praise me and worship...

Silo

By Sri Ramya Smruthi Poetess’ note:- I am unsure of what a silo truly is, i have only seen them when i wander, or when i get lost in...

Flowers

By Sri Ramya Smruthi Let’s hold a banquet for flowers We’ll have a ball A grand gala for them all Roses, peonies, lilies, soft, white...

Comments


bottom of page