By Amarjeet Kumar
उठकर देखा तो सामने चांद खड़ा था
वह अपनी शीतलता से शीतल कर रहा था
वह अपनी रोशनी में मुझे चलने कह रहा था ।
बौर हुआ सवेरा हुआ
उठकर देखा तो सामने यान खड़ा था
वह अपनी वायु के गति से लेकर जा रहा था
वह अपनी वाणी से मुझे शांत कर रहा था।
बौर हुआ सवेरा हुआ
उठकर देखा तो सामने गुरु खड़ा था
वह अपनी कुटिया में शांत बैठने कह रहा था
वह अपनी ज्ञान से मुझे ज्ञानी बना रहा था।
बौर हुआ सवेरा हुआ
उठकर देखा तो सामने साथी खड़ा था
वह अपनी इशारों में प्रेम करने कह रहा था
वह अपनी प्रेमखेल में मुझे खेलने सीखा रहाथा ।
बौर हुआ सवेरा हुआ
उठकर देखा तो सामने शीशा पड़ा था
वह अपनी गुण से गुणी बनने कह रहा था
वह अपनी गुण से मुझे अपने गुण दिखा रहा था।
By Amarjeet Kumar
Comments