By Shalini Sharma
हाँ, बदल गई है वो
अपनी कोरे जीवन को
खुशियों से भर रही है वो
झुकी रही थी ,आज तक जो
वो पलके आज उठी हुई है
लोगों की निगाहें
आज उसी पर रुकी हुई है
देखती थी मैं उसे
बढ़ते कदमों को
रोकते हुए
हाथों को मलते हुए
छुपकर अम्मा की चूड़ियां पहन
दर्पण निहारते हुए
पर आज तो वह
न आगे देखती हैं न पीछे
न ऊपर, ना नीचे
नकारती हुई अतीत
चलती जाती है आगे की ओर
मानो दो कदम पर हो भोर
पर उसने कैसे सीखा
दुनिया से लड़ना
खुशियों को लपकना
दुनिया ने सताकर
खुद ही उसे मजबूर किया
पकडने को हथियार
नजरे झुकाने पर शर्मीली कहा
नजरे उठाने पर दे दिया
बेहया का खिताब
पर यह बदलाव केवल उसमें नहीं
हर उसे लड़की में आता है
जिसे समाज के
द्विअर्थो का जाल सताता है
मजबूर हो ,पीड़ित हो
समाज को अपनी अर्थो से
परिचित कराती है
यही वे हालात है
जब वह समाज के खिलाफ
अपना पहला कदम बढ़ाती है
By Shalini Sharma
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