By Tanushka Luthra
कल बज़ार में चुड़िया देख,
उसका जी भी मचल गया,
पैरों की पायल देख,
घुंघरू की आवाज सुन,
उसका जी भी मचल गया।
याद करने लगी पुराने
ज़िन्दगी के हर वो पल,
लाल रंग डाली सवरती थी,
पायल की आवाज़ करती थी हलचल।
समय का पहिया यूं हिला,
अच्छा दौर पल में ढल गया,
अँधेरे काले बादल छाये,
दुःख ने अंगड़ाई ली,
और सब कुछ छट से पिघल गया।
लाल हरे से दूर हो गयी,
समाज के कितने बंधन थे,
सफ़ेद फीके रंग पहनती,
कहती मेरी तक़दीर है ये।
कोई बताओ उस पगली को,
वो तो अभी जीवित है,
जाने वाला चल बसा,
तुझको तो अब भी बसना है।
किसी ओर के जीवन के अंतिम मोड़ के कारण,
खुद को बदकिस्मत क्यों कहना?
तू तो इतनी किस्मत वाली,
रब तक तेरा सजदा करता।
तू डाल जो तुझको मन करे,
पायल, गजरा, लाल श्रृंगार,
बदलता समय
लोग तो होते ही हैं पागल,
काम है उनका लगाना चिंगार।
कितना बल है तुझमें,
तुझे अंदाज़ा तक ना इस बात का,
पूरा परिवार अकेले सम्भाले,
फिर भी सोचे समाज का।
फिर भी सोचे समाज का????
By Tanushka Luthra
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