By Gautam Anand
अच्छा तो अब बंटवारा होगा
यानि जो घर सबका था
अब सबका दो-दो कमरा होगा
लोग बहुत हैं कमरे कम हैं
मुश्किल इसमें गुज़ारा होगा
इस घर पे हिस्सेदारी सबकी
बस जिम्मेदारी से किनारा होगा
जिसके फल खाये थे सबने
कटा वो पेड़ बेचारा होगा
चिड़ियों का कुछ दोष नहीं था
लेकिन वो बेघर बेचारा होगा
इस मिट्टी में जब खेले थे हम
बचपन वो कितना प्यारा होगा
अब नहीं दिखेगी फूलों की क्यारी
अब गमलों में ही गुज़ारा होगा
देख बुलंदी इस घर की हमने
कब सोचा था इतना बिखरा होगा
जिस दिन घर की नींव पड़ी थी
माँ की आँख में क्या-क्या होगा
अब तस्वीरों में सिमट गए हैं
जिन्होंने घर को संवारा होगा
सब अपने हिस्से जीत गए हैं
लाज़िम है घर ही हारा होगा
By Gautam Anand
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