By Dr. Devendra K Prajapati
प्रकाश ही प्रारब्ध है,
प्रकाश ही अस्तित्व है।
जो जल रहा उस आग में
जो दीप्त में प्रज्वलित,
प्रकाश ही वो तेज है,
जो सूर्य सा है जल रहा।
है आग क्या जला रही,
क्या जल रहा उस अंश में,
एक नश्वर सा बदन,
एक नश्वर सा खयाल है।
दीप भी है लड़ रहा,
अंधकार से अज्ञान से।
दीप है बदल रहा,
बाह्य के प्रकाश को,
अंतः के प्रकाश से।
प्रकाश ही प्रारब्ध है,
प्रकाश ही अस्तित्व है।
By Dr. Devendra K Prajapati
Very good
Well Written
Nice Thought.
Veri nice
Nice