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पैसों की चाहत में

By Jai Kishor Mandal



 पैसों की चाहत में रिश्ते सब हम भूल गए,

पैसा-पैसा हम करते रहे और इसमें उलझ गए।


रिश्ते सब खत्म हो रहे हैं, पैसो की चाहत में,

इंसान, इंसान को मार रहा है इसी  चाहत में।


हो क्या गया है सबको ज़िन्दगी को जीना भूल गए है,

कैरियर के इस चक्कर में कितने suicide हो चुके है।


बेटा तुझे कुछ करना है कुछ करना है करियर बनाना है,

कोई ये क्यों नहीं कहता कि तुझे ज़िन्दगी भी जीना है।


लोग इतने टेंशन में क्यों है बस पैसा कमाना है हम सबको,

ये क्या बात हुई ज़िन्दगी भी तो जीना है हम सबको।


कहाँ गए दिन वो जो दोस्तों के साथ बिताए हमने,

अब समय कहाँ मिलता है जो पल बिताए साथ हमने।


पैसों की चाहत कुछ ऐसी है जिसके पिछे पागल हर कोई है,

दूर कितना भी हो जाए इससे ये लालच बहुत बड़ी है।


रिश्ता अब प्यारा नहीं रहा पैसों की चाहत में,

लोग दूर हो रहें पैसों के इस लालच में।


मकसद सिर्फ लखपति से करोड़पति और फिर अरबपति हैं बनना ,

पैसों की इस चाहत में जैसे भी हो बस सम्पति को हैं हथियाना।


पैसे की इस चाहत में कितने खून हुए इस समाज में,

नमस्ते भी उनको होता हैं जो सेठ हैं इस समाज में।


पैसा हैं तो आप खास हो,

भले ही आप कितने क्यों न मुर्ख हो।


चुनाव में टिकट भी उसी को मिलता हें,

जेब जिसका गर्म होता हैं।


सब पैसों की मोह माया हैं,

चाहें आगे कंठ दबा के निकालना हैं।


कितना प्यारा रिश्ता होता था इस समाज में,

आज खत्म हो गया पैसों की इस चाहत में।


पैसे ने भाई-भाई को बाँटा हैं,

पैसे कि चाहत में घर को तोडा हैं।


मेरी PROPERTY मेरे अब नाम कर दो,

नया रंग हैं यह आज के इस समाज का देखों।


लोग उलझ गए हैं पैसों की इस चाहत में,

सुबह से शाम busy रहते हैं OFFICE में।


था जो रिश्ता कभी बहुत प्यारा,

आज खत्म हो गया है वो रिश्ता हमारा।


मतलबी हो गया हैं देखों यह समाज अपना,

कुछ पैसों के लिए बिक गया हैं यह समाज अपना।


पैसों की चाहत में लोग अपनों से दूर हो रहें हैं,

नियम बदल गए समाज के जहाँ सब पैसों से खुश हो रहे हैं।


By Jai Kishor Mandal



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