By Poonam Saroj
उम्र के जाते जाते जिंदगी जीना सीख रही हूं हर दिन नया है हर रात नई है पता नहीं सच है कि झूठ फिर भी लिख रही हूं। अभी अपरिचित हूं कई अटकलों से फिर भी दुर्गम पथों का परिचय लिख रही हूं। उम्र के जाते जाते जिंदगी जीना सीख रही हूं। खेल किस्मत का नहीं जिंदगी का है किसी की जीत को किसी की हार लिख रही हूं ,मैं तो बस बिखरी हुई यादों को जैसे एक पैगाम लिख रही हूं। उम्र के जाते जाते जिंदगी जीना सीख रही हूं। ख़ामोश लफ्जों को शब्दों का कोताहल लिख रही हूं नींद के आगोश में हूं जो जिंदगी को मौत लिख रही हूं कहानी नहीं ये किसी मोहब्बत की ना किस्सा किसी के चाहत की, मैं तो बस इस संघर्षहीन जिंदगी को जैसे एक पूर्ण विराम लिख रही हूं।
By Poonam Saroj
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