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"पर्दा "

Updated: Oct 4

By Rashmi Dadhich



 तुझे मुझसे मोहब्बत है,  यह कहना, बस तेरी आदत है।

 कभी पढ़ा है मेरी आंखों में,  जो तुझ से बहुत कुछ कहती है, 

 हंसते-हंसते भी दर्द सभी, पर्दे में छुप कर सहती है।

कब तलक इंतजार करूं,  क्या वो दिन भी कभी आएगा?? 

 पर्दे के पीछे घुटन मेरी, क्या तू भी समझ पाएगा??? 


समाज, जाति, धर्म, के लिबास मैंने पहने हैं, 

रीति, रिवाजों, परंपराओं, से जड़े मेरे गहने है, 

मत नकार मेरे वजूद को, मैं भी तो इंसान हूं, 

कहीं हिंदू, कहीं ईसाई,तो कहीं मुसलमान हूँ। 


हजारों ख्वाहिशें है मेरी, मैं भी जीना चाहती हूं। 

 तपिश की बूंदों में नहीं, बारिश में भीगना चाहती हूं। 

खुली फिजा के संग- संग, वादियों में महकना चाहती हूं। 

खूबसूरती पर गुमान कर, दुनिया में चमकना चाहती हूं। 

पहचान मेरे धर्म को नहीं, मेरी शख्सियत को दिला पाएगा। 

कब तलक इंतजार करूं क्या वो दिन भी कभी आएगा

 पर्दे के पीछ……. 


मेरी गुज़ारिश या तेरी इनायत,  यह तो मेरा सबब नहीं। 

खुद के फ़ैसलों में, मैं काबिल हूं, तेरी नजर में, वो अदब नहीं। 


तेरी रहमत नहीं, मोहब्बत चाहती हूं, 

 इस फैसले पर तेरी पहल चाहती हूं, 

मेरे घुंघट या नक़ाब को मत बोझ बना। 

मेरी इच्छा हो, तो पर्दा करूं, यह हक चाहती हूं। 


By Rashmi Dadhich




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