By Dr. Vibhav Saxena
मैंने जब खोली अचानक अलमारी,
तो पत्र एक पुराना मुझको मिला।
पढ़कर गुजरी यादें ताजा हो गयीं,
कितने प्यार से था मित्र ने लिखा।।
अचानक लगा जैसे रो रहा है पत्र,
ये देखकर मैं तो वाकई हैरान हुआ।
मैंने पूछा उससे कारण रोने का जब,
तो जवाब सुनकर मैं परेशान हुआ।।
पत्र बोला मुझे अब पूछता है कौन,
रिश्ते निभते हैं स्वार्थ की नीति से।
सोशल मीडिया ही तो सब कुछ है,
भावनाएँ दिखाते हो इसी रीति से।।
ना पत्र जैसा प्रेम है ना ही वो प्रतीक्षा,
मानव को समय बचाने की है इच्छा।
कुछ भी पोस्ट करने का चलन है अब,
संस्कार दिखते हैं ना ही अच्छी शिक्षा।।
एक दिन पत्रों को संग्रहालय में रखकर,
हर एक आगंतुक को दिखाया जाएगा।
ये थे कभी भावना संवेदना के वाहक,
हंसकर सबको यह भी बताया जाएगा।।
पत्र तो चुप हुआ पर मैं सोचने लगा,
कि हर कोई एक दूजे से दूर हो गया।
पत्र लिखने का चलन बन्द क्या हुआ,
स्नेह का हर नाता भी जैसे खो गया।।
By Dr. Vibhav Saxena
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