By Muskan Rastogi
अक्सर मैं उसे कुछ बातें समझा नहीं पाती,
उसे बता नहीं पाती कि नोक-झोंक चाहे कितनी ही हो,
लेकिन मेरे दिल की मोहब्बत पर हावी नहीं हो सकती,
तो अक्सर जब कई बातें वह नहीं समझता,
मैं उसे इस दिल के थोड़े करीब ले आती हूं,
और बस इतने से अल्फ़ाज़ हैं मेरे कि मुझे तुम्हें गले से लगाना है,
मेरे दिल की धड़कन से तुम्हें रुबरू करवाना है!
मेरे अश्कों का तुम्हें मसरफ़ समझाना है,
मुझे समझाना है कि हर बूंद तुम्हें खोने से डरती है,
तुम्हें कहते तो देते हो कि चले जाओ,
फिर क्यों ये आँखें तेरे इब्सार को तरसती हैं?
हाँ, जानती हूं कि मेरे लफ़्ज़ों में कभी बेरूखी नाराज़गी सी है,
लेकिन मेरी ज़िंदगी तेरी मोहब्बत के लिए झगड़ती है!
अब आस-पास चेहरे हज़ार बेशक़्क़ सही, पर अलावा तेरे,
मेरे जजबातों पर किसी का हक नहीं!
अब तुम रूठो तो तुम्हारी रूह के करीब जाना है,
दुनिया के हर कोने को सुनाना,
कि दिल के हर हिस्से में तू रहता है,
मेरे शब्दों का भार सिर्फ तू सहता है।
By Muskan Rastogi
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