By Kabir Anand
अनंत समुद्र की बहती लहरों को देख,
अक्सर मन में कई बेज़ुबान ख्याल आते हैं,
हर प्रश्न के उत्तर खुदसे अपने समक्ष स्वयं प्रकट हो जाते हैं।
क्यों, क्या, कैसे और कब?
ये सवाल आपने आप हल हो जाते हैं |
मेरे मन की व्यथा हो,
या फिर मस्तिष्क की दुविधा सही,
सब मानो स्वयं ही हल हो जाते हैं।
अक्सर अनंत समुद्र की बहती लहरों को देख
असंभव कार्य भी संभव लगने लग जाता है,
नामुमकिन भी मुमकिन से लगने लग जाता है |
अब क्या करूँ?
बेथे रहता हूँ मे एक शांत से कोने मैं,
खोले किताब अपनी |
समुद्र की बहती लहरों को ताक,
ढलते सूरज को निहार,
चंद्रमा की ख़ूबसूरती का एहसास कर,
कुदरत की अनोखी कृतियों को महसूस कर,
लिखता रहता हूँ बैठे-बैठे शायद दास्तां-ए-ज़िंदगी अपनी।
शायद दास्तां-ए-ज़िंदगी अपनी ।
बस उस अनंत समुद्र को निहार,
मानों खो जाता हूँ इस भूमंडल में कहिन,
आपने उत्तर पाने के नाते,
बेथ जाता हूँ घंटों वहीं।
उन बहती लहरों को देख,
खो जाता हूँ इस सोच में,
मन में कई बेज़ुबान प्रश्न लिये,
घुल जाता हूँ श्याद उन ही लहरों में कहिन।
बारिश की गिरती बूंदों का एहसास कर,
हाथों में पानी की ताजगी को महसूस कर,
शायद लिखने पर मजबूर हो जाता हूँ,
जो महसूस कर रहा हूँ उससे
व्यक्त करने को व्याकुल हो जाता हूँ,
इन बादलों से तपकती बुंदों को देख,
लिखने पर मजबूर हो जाता हूँ,
क्या करूं?
क्या करूं ऐसे वक्त मे मैं भी शायर बन जाता हूं।
अब बिन मदिरा नशा कहो इसे,
या बेवक्त की मुसाफिरी सही,
मैं तो यूं ही, एसे ही, कैसे भी,
समा जाता हूँ इस वक्त के जंजाल में कहिन,
बस प्रकृति की ख़ूबसूरती निहारने में बिता देता हूँ
घंटों वहीं।
पर अभी भी अंजान हूँ
इस प्रश्न से,
की आखिर क्या है जिंदगी?
नहीं जानता अभी,
पर जानने की चाहत है बहुत मेरी |
शायद इसी खोज में निकल जाता हूँ मैं,
बहती लहरों को निहार,
उड़ते पंछियों को देख,
पर्यावरण की हार कृति को अपनी आँखों में समेटे,
निकल पड़ता हूँ मे,
लिए अपनी किताब बस लिखता रहता हूँ मैं,
इस आशा से की शायद यही है दास्तान-ए-जिंदगी मेरी,
की शायद यही है दास्तान-ए-जिंदगी मेरी।
By Kabir Anand
Beautiful
This is so niceee bhaiii!!!!
True life lessons hidden in the poem.
👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻
सुंदर!🥹