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दायरे तमीज़ों के

By Pankaj Pahwa



हैं दायरे तमीज़ों के बढ़ने लगे यूँ,

जो कहते थे आप, वो कहने लगे तू,

ये बदलते हालात, तालीम-ए-नसल है,

पढ़ लिख गए जो ज्यादा ये उनकी अकल है,

जो रिक्शा चलाये वो कहता है आप,

जो पढ़ लिख के आये करे तू-तड़ाक,

हैं दायरे तमीज़ों के बढ़ने लगे यूँ,

जो कहते थे आप, वो कहने लगे तू,


यहाँ इक नयी ही रिवायत चली है,

मकान हैं बड़े, तंग सारी गली है,

है लड़ना झगड़ना, वो पार्किंग को लेकर,

नहीं बाप की तेरे, मेरी गली है,

जो बीच-बचाव में, आये कोई तो,

छोड़ो झगड़ा पहले बताएं इसी को,

हैं दायरे तमीज़ों के बढ़ने लगे यूँ,

जो कहते थे आप, वो कहने लगे तू,


कहीं जिसके इक से, जो ज्यादा मकान हैं,

वो बंदा खुदा, खुद को कहने लगा है,

वो समझे मुहल्ले में इक वो ही है बस,

जिसे जग ये सारा, जी कहने लगा है,

ना जाना कभी घर तुम, ऐसे किसी के,

गुरूर आँखों में जिसकी रहने लगा है,

हैं दायरे तमीज़ों के बढ़ने लगे यूँ,

जो कहते थे आप, वो कहने लगे तू,


By Pankaj Pahwa



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