By Kavita Batra
हम सब कुछ करे बैठे हैं, यार के महफ़िल में,
तलब - ए- दीदार मेरे होने का भी हो ।
मैं बोलूँ नहीं कुछ भी मगर ,
मेरे ना होने का ,
उनके मन में , एक डर सा भी हो।
लाज़मी है दोनों का , "हम " में,
लाज़मी है दोनों का , "हम " में,
दोनों का मैं का भी होना ,
किसी एक के लिए " मैं " झुकता चला जाए,
तो क्या ही ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा हो ।
By Kavita Batra
Comentários