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तुम्हारी बाहों के दरमियान

By Mrityunjay Mishra



तुम्हारी बाहों के दरमियान भी, कभी तो अपनी भी रात होगी...

अजीब लगती है ये बात तुमको, मगर कभी सच ये बात होगी...

तुम्हारी बाहों के दरमियान...


हमारी ख्वाहिश को जान लो तुम, कि फिर न कहना क्या मांगते हो...

कोई तकल्लुफ नहीं जरूरी, मुझे पता है सब जानते हो...

तुम्हारी आंखें बयां करेंगी, तुम्हें भी ख्वाहिश हमारी होगी...

तुम्हारी बाहों के दरमियान... 


यूं नर्म लहजे से बोलकर तुम, हमारे दिल में उतर गए हो...

अभी तो हाजिर किया था खुद को, पता नहीं अब किधर गए हो...

तड़प मेरे दिल की आज जो है, कभी तुम्हारी तड़प भी होगी...

तुम्हारी बाहों के दरमियान... 


कहां मुनासिब है ये तरीका, जो वार आंखों से कर रहे हो...

खबर तुम्हें तो जरूर है ये, कि दिल की हालत क्या कर रहे हो...

अभी तो हंस लो मगर न भूलो, कभी ये हालत तुम्हारी होगी...

तुम्हारी बाहों के दरमियान... 


तुम्हारी बाहों के दरमियान भी, कभी तो अपनी भी रात होगी...

अजीब लगती है ये बात तुमको मगर कभी सच यह बात होगी..


By Mrityunjay Mishra



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