By Shreyansh Upadhyay
बेचने बैठ गया मैं सब्र इस ज़माने में,
भूल गया कि मुनाफे के लिए खरीदार ज़रूरी है।
कैसे याद रखेंगे लोग कहानियों को,
बेहतरीन मंजिल के लिए रास्ते दुशवार ज़रूरी हैं।
कितना आसान है ना कमजोरों का लुट जाना,
मेरे दिल को भी एक पहरेदार ज़रूरी है।
कैसे बढ़ेगी कहानी आखिरी पन्ने तक,
इनमें एक नही, कम से कम दो किरदार ज़रूरी हैं।
पेट तो भर ही जायेगा कैसे भी,
यहां खेलने के लिए भी शिकार ज़रूरी है।
मैं चले जाऊंगा दूर हर जगह से,
उसके लिए तेरा साफ इंकार ज़रूरी है।
तुझे भूल भी जायेंगे एक उम्र लगा कर,
पर उसके लिए तुझे देखना आखिरी बार ज़रूरी है।
By Shreyansh Upadhyay
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