By Richa Singh
महकता फूल, उड़ती सी धूल
घुमड़ती घटा, बिखरती छटा
गुजरता वक्त, ठहरता दर्द
’मेरे ’ की लिपटन, ’दुनिया ’की बिखरन
आज़ाद हवा, घटों में बंद
तोड़ती धाराएं, दरिया के बंध
अनोखी, अनसुलझी, अनुत्तरित
बूंद बूंद में तृप्त, प्लावित, दीप्त
जिन्दगी......
By Richa Singh
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