By Satya Deo Pathak
छोड़ दो देखना किसी और को,
खुद को तो देख लो।
बहुत हुआ अंगुलियों उठाना किसी और पर,
खुद पर ज़रा गौर कर लो।
है जिंदगी की जो ये दौड़?
मुकाबले से ही आता जीत का मज़ा।
आता जिन्हें करना मुकाबला,
औरों की राहों में दीवार नहीं उठाता।
होना चुभन देख कर किसी को बढ़ते हुए,
है मामूली सी बात।
पर जानना है जरूरी क्या थी उसमें खूबी?
क्या थी उसमे बात?
निंदा करो किसी की ,ना है कोई ऐतराज़।
होगा जो गलत कोई, चुभेगी ना तेरी बात।
जो सुनी सुनाई हो बातें, रख लेना तुम साक्ष्य।
अफवाहों में पड़ना नहीं, करना ना विश्वास।
दूरियां मिटाओ, गिले शिकवे मिटाओ,
हो मन में जो गांठ।
स्वागत करो किसी का हाथ बढ़ाकर,
शतरंज की हो ना अब कोई बिसात।
By Satya Deo Pathak
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