By Naaz
आओ अपनी कहानी सुनाती हूँ,
पर तुम सुनोगे क्या?
भूल सा गई हूँ खुल के हँसना,
बोलो तुम मुझे फिर से हँसाओगे क्या?
बर्दाश्त कर लूंगी तुम्हारी नाराज़गी,
पर तुम खुद के गुस्से को रोक पाओगे क्या?
कर बैठी हूँ नादानियाँ आज भी,
मुझे तुम संभाल पाओगे क्या?
झगड़ा तो सब करते हैं,
लेकिन तुम मुझे मनाओगे क्या?
हाँ, लौट आते हो तुम हर बार मेरे लाख मना करने के बाद भी,
बोलो ज़िन्दगी साथ निभाओगे क्या?
हैं बहुत से ज़ख़्म मेरे इस रूह पर,
देती हूँ तुम्हें हक़ इन ज़ख्मों पर मरहम बन पाओगे क्या?
अगर कर बैठूं कोई गलती कभी,
तो मुझे माफ़ कर पाओगे क्या?
By Naaz
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