By Shriram Bharti
किसी शख्स की हिफाज़त करने को, मुहब्बत करने को
तुम मेरे करीब अब आती नहीं हो
कैसे जियूं कि कुछ कर के जी नहीं लगता
मैं रोता ही रहता हूं और तुम भी मुस्कुराती नहीं हो
अनकही बातों का ज़ोर बड़ा है मुझ पर! क्या करूं?
तुम बात नहीं करती, क्यूं मुझे रुलाती नहीं हो?
तुम बेखबर हो, न जानो कौन कैसा है
मैं सिसकता रह जाता हूं, तुम पास बुलाती नहीं हो
मेरी आंखों पर परत चढ़ी है तुम्हारे जाने के बाद
हर मलहम बेअसर है, तुम सिर सहलाती नहीं हो
मेरे दिल को थामो तो समझोगी क्या होता है
ये चाहता है तुमको पर तुम चाहती नहीं हो
किन दुआओं ने रुख मोड़ा, तुम्हे मुझे ख़बर कहां?
तुम बिछड़ना चाहती हो, तुम बताती नहीं हो।
By Shriram Bharti
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