By Nikhil Tandon
“कलयुग के इस काल में
न कोई राम न कोई सीता
न कोई कृष्ण न कोई मीरा
अब श्रवण सा कोई पुत्र नहीं
न दशरथ सा कोई अब पिता कहीं
अब सावित्री सी न कोई अर्धांगिनी
न श्रीराम सा कोई अब पति कहीं
अब द्रोण सा होता कोई गुरु नहीं
न एकलव्य सा कोई अब शिष्य कहीं
अब भरत सा है कोई अनुज नहीं
न कर्ण सा कोई अब मित्र कहीं
अब कृष्ण सा है कोई हितैषी नहीं
और न मिलते अब वैसे सुदामा कहीं
अब प्रहलाद सा है कोई भक्त नहीं
न हरिश्चंद्र सा कोई अब वचनबद्ध कहीं
कलयुग के इस काल में
न कोई राम न कोई सीता
न कोई कृष्ण न कोई मीरा”
By Nikhil Tandon
Such ekdum
Bahut badiya
Very good 💯 💯
Really love the selection of words to deliver the meaning.
Wow so beautiful