By Rashmi Dadhich
ओ मेरी जान तू समझदार है,
मगर इतनी भी नहीं…..
मैंने पंखों को झुलसते देखा है,
उस आग को बरसते देखा है,
मिट्टी को पानी से बिखरते देखा है,
इस कच्ची उम्र के दौर से गुजरके देखा है।
मेरी जान तू समझती है,
मगर फिजाओं को नहीं…….
मेरे एहतियात मेरी फिक्र तुझे बंदीशे लगती है,
हर बात पर मेरा जिक्र तुझे रंजिशें लगती है,
इस उम्र का असर है यह तेरा कसूर नहीं,
तेरी बगावत पर मेरी इनायत तुझे साजिशें लगती है।
मेरी जान तू हकदार है,
मगर जफाओं कि नहीं……
तू कली है मेरे बाग की महकना चाहती है,
दोस्तों में इस गुलशन में चहकना चाहती है,
मैं महफूज रखना चाहती हूं तुम्हें शोलों से,
पर तू आग में दहकना चाहती है।
मेरी जान तू वफादार है,
मगर दुनिया तो नहीं……
मेरी धड़कन है तू मेरे दिल के अजीज है,
तेरी उलझन, परेशानियां, मेरे भी दिल के करीब है।
यह वक्त का तकाजा है और तेरी जरूरत भी,
सब्र से, आराम से, तू लिख रही तेरा नसीब है।
मेरी जान तू जिम्मेदार है,
मगर इस उम्र में नहीं….
By Rashmi Dadhich
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