By Sakshi Arya
जब स्वभाव की सरलता,
मन की चंचलता को विराम देने लग जाए ।
जब एकांत ही सुख दे ,
और भीड़ घुटन का विषय बन जाए।
जब हृदय की सुनना श्रेष्ठ लगे,
और लोग क्या कहेंगे का भय विलुप्त हो जाए।
जब विषय ना मनपसंद का रहे ना नापसंद का ,
जो है वही उत्तम मानने योग्य हो जाए।
जब हृदय की पीड़ा को केवल ईश्वर ही जानता हो ,
और उन्ही का नाम उस पीड़ा पर अंकुश लगाता हो।
जब प्रकृति की गोद में सुकून का अनुभव हो जाए ,
और भौतिक विलासता से मोह भंग हो जाए ।
तब समझ लेना कि जीवन को " एक नई दिशा " मिल गई है,
और इस दिशा में केवल निरंतर आगे ही बढ़ते जाना है ।
ना बीते हुए कल की परछाई पड़ने देना ,
और ना आने वाले कल की चिंता में खुद को जलाना है।
जो है वो केवल आज है ,
अभी है और इस पल में है,
इसी को जीते चले जाना है।
By Sakshi Arya
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