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Noted Nest

एक तटरेखा भ्रम

By Stavya Vij



खड़ी थी एक किनारे पर

नीचे रेत, सामने, सूरज ढलने पर।

पानी का बहाव, सिरक गई रेत

देखूं अपने पदचिह्न, एकाग्रचित।

पानी का बहाव, ले गया मेरा पदचिह्न अपने साथ

लेकिन वो फिर आएगा मेरे पास

लेकर सीप सौ-हज़ार।

क्यों दल बदलता है तू, सागर?

कभी आमंत्रित हूं, तो कभी निष्कासित मैं ही।

कभी तु डुबा देता है

कभी अपने कंधे पर उठा लेता है।

यूं मेरी जिंदगी मत बन, है एक ही काफी।

शायद, परीक्षा ले रहा है

वरना क्यों हाथ-पैर मारती मैं भी

अगर तुझे हराने की चाह नहीं होती।

छल करता है तू

खड़ी आज भी उसहि किनारे पर हूं

पर आगे जाने का भ्रम करवाता है तू।

हालांकि, तूने मुझे तैरना सिखाया

पर जिंदगी बनना किससे सीखा तू?


By Stavya Vij



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