By Sushma Vohra
जीवन है आधार शिला प्रकृति का ,
प्रकृति है बुनियाद पेड-पौधे का,
पेड-पौधे है मूल हरियाली का,
हरियाली है आधार स्तंभ जीवन का ।
ज्ञान-चेतना अभाव से मस्तिष्क तुम्हारा अविरुद्ध, पाषाण से भी निष्ठुर हृदय तुम्हारा तृष्णायुक्त ।
स्वार्थ परायण में बुने है तुमने विध्वंसक प्रबंध,
भूल कर्तव्य, हो स्वार्थी, आज कितने हो क्षुब्ध ।।
प्रदूषण ने लिया है सब कुछ लीन ,
पर्यावरण हुआ परिस्थितियों के अधीन ।
पेड-पौधे काट बनाया धरा को क्षीण,
काया है तुम्हारी भी अब तो जीर्ण ।।
गर्मी से हाहाकार, शीत में बर्फ की मार,
संपूर्ण ग्लोबल भी अब हुआ लाल ।
ग्लेशियर ने पिघल बताया अपना वृतांत ,
ओजोन परत भी हुई अब पैराबैगनी लाल ।।
भूला कर्तव्य, बना स्वार्थी, सुध लो अब अपनी,
लो संकल्प, रोपो वृक्ष , बिखरे सुखद ज्योति।
हरियाली, मन भावन है, सृष्टि के कण में रमती ,
रोपो बीज, करे श्रृंगार, रंग-बिरंगे सुमन से धरती ।।
भोर की किरण आए, लाली, कोयल बैठे डाल-डाल, आँगन चहकाए ,आए गौरेया, चूं- चूं, चीं -ची ताल-ताल । पर्यावरण दूषित न हो, आओ मिल हरियाली लाए आज,
पेड-पौधे, फल-फूल से पूर्ण धरा सजाएं आज ।।
आओ, आज फिर बनाए मिट्टी के घरोंदे ,
सोंधी-2 खुशबु वाले मिट्टी के घरोंदे ।
रोपे बीज, पाए वृक्ष, हरी-भरी वंसुधरे,
दरख्त से, बेल से, पुष्प से भरे वसुधरे
By Sushma Vohra
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