By Pushpa Karn
ख़ामोशी की जंजीरों को तोड़,
गजंू नेदो फि जांमेंअपनेअल्फाजों को
अरमानों के ति नके जोड़,
सवं रनेदो दि ल के आशि यानेको
अतं र्द्वद्ं व के यद्ुध मेंअपनेको हार,
जीतनेदो अपनेस्वाभि मान को
ना बननेदेदि ल के ज़ख्मों को नासरू
हौसलों की दवा सेकर जि दं ा अपनेसम्मान को
अब तो बस नहींसहनी हैअत्याचार
कर बलु दं आवाज और दि ला अपनेअस्ति त्व को पहचान
लड़कर चनु ौति यों से, मजबरूी की सीमाओंको तोड़,
फि र तो येजमीं हैतरेी और तरेा हैआसमान।
अब तो मौन को तजना हैऔर
पाना हैअपना अधि कार
By Pushpa Karn
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